"तेरह तेजी " की हक़ीक़त इस्लामी कैलेंडर का दूसरा महीना सफर जब आता है तो इसकी चर्चा होंने लगती है क्यों की पहली सफर से तेरह सफर के दि...
"तेरह तेजी " की हक़ीक़त
इस्लामी कैलेंडर का दूसरा महीना सफर जब आता है तो इसकी चर्चा होंने लगती है क्यों की पहली सफर से तेरह सफर के दिनों को तेरह तेजी माना जाता है और मान्यता है कि इन दिनों कुछ नया नही करना चाहिए वरना नुकसान होता है ।
शरीयत में इसका कोई जिक्र नहीं है और सदक़ा दे के कोई भी काम किया जा सकता है ।
लेकिन
शिया मुस्लिम तो वैसे भी कर्बला के शहीदों पे हुए ज़ुल्म को याद करके मुहर्रम और सफर के महीने में कोई नया काम नही करता और यह भी माना जाता है कि 1 सफर से 13 सफर नबी की नवासियों उनके बचे घराने पे बहुत ज़ुल्म हुए और यह मान के वे इनदिनों कोई नया काम नहीं करते । जबकि तेरह तेजी को मनहूस दिन शिया सुन्नी दोनो मानते हैं
महमूदशाह शरकी की बेगम बीबी राजे ने कम पढ़ी लिखी औरतों के याद करने के लिए इस्लामिक महीनोंके आसान नाम रखे थे जैसे मुहर्रम को दाहा इत्यादि और उसमें भी जब सफर का नाम रखा तो तेरह तेजी रखा जो यह बताता है कि यह मान्यता इन दिनों में कोई नया काम ना करने की आज से 700 वर्ष पहले भी रही है
सत्यता कुछ भी हो मेरा मानना है कि सफर के महीने में भी मुहर्रम की तरह कोई नए कपड़े ग़म का एहसास करते हुए ना बनवाया जाय और अगर कोई ज़रूरत किसी नए काम को करने की पड़ ही जाय तो सदक़ा निकाल के कर लें ।
हाँ अंधविश्वास की इसमे कोई जगह नहीं कि कुछ लोग अंडे रखो चावल रखो इत्यादि टोटके इनदिनों के नुकसान से बचने के लिए करते है जो सही नहीं है सदके से बड़ी कोई चीज़ नही जो मुसीबत को टाले और यह दिन मनहूस नही बल्कि जो नया काम नहीं किया जाता तो हमारा जाती दिल का मामला है और वो है ग़म का एहसास और कर्बला वालों पे हुए ज़ुल्म की याद । शरीयत में ये दिन मनहूस नही है
एस एम मासूम